*🌾चार कीमती रत्न भेज रहा हूँ,*🌹 *मुझे पूर्ण विश्वास है कि आप इससे जरूर धनवान होंगे* ।🙌🌹
*🌾1.पहला रत्न है: "माफी"*🙏 *तुम्हारे लिए कोई कुछ भी कहे, तुम उसकी बात को कभी अपने मन में न बिठाना, और ना ही उसके लिए कभी प्रतिकार की भावना मन में रखना, बल्कि उसे माफ़ कर देना।*🙌🌹
*🌾2.दूसरा रत्न है: "भूल जाना"*👏 *अपने द्वारा दूसरों के प्रति किये गए उपकार को भूल जाना, कभी भी उस किए गए उपकार का प्रतिलाभ मिलने की उम्मीद मन में न रखना।*🙌🌹
*🌾3.तीसरा रत्न है: "विश्वास"*🙌 *हमेशा अपनी मेहनत और उस परमपिता परमात्मा पर अटूट विश्वास रखना । यही सफलता का सूत्र है ।*🙌🌹
*🌾4.चौथा रत्न है: "वैराग्य"*😭 *हमेशा यह याद रखना कि जब हमारा जन्म हुआ है तो निश्चित ही हमें एक दिन मरना भी है। इसलिए बिना लिप्त हुए जीवन का आनंद लेना । वर्तमान में जीना। यही जीवन का असल सच है |*
गुरुरग्निर्द्वि जातीनां वर्णानां ब्राह्मणो गुरुः । पतिरेव गुरुः स्त्रीणां सर्वस्याभ्यागतो गुरुः ।।१।।
1. ब्राह्मणों को अग्नि की पूजा करनी चाहिए . दुसरे लोगों को ब्राह्मण की पूजा करनी चाहिए . पत्नी को पति की पूजा करनी चाहिए तथा दोपहर के भोजन के लिए जो अतिथि आये उसकी सभी को पूजा करनी चाहिए .
यथा चतुर्भिः कनकं पराक्ष्यते निघर्षणं छेदनतापताडनैः ।
तथा चतुर्भिः पुरुषः परीक्ष्य़ते त्यागेन शीलेन गुणेन कर्मणा ।।२।।
2. सोने की परख उसे घिस कर, काट कर, गरम कर के और पीट कर की जाती है. उसी तरह व्यक्ति का परीक्षण वह कितना त्याग करता है, उसका आचरण कैसा है, उसमे गुण कौनसे है और उसका व्यवहार कैसा है इससे होता है.
तावद्भयेन भेतव्यं यावद् भयमनागतम् । आगतं तु भयं वीक्ष्यं प्रहर्तव्यमशंकया ।।३।।
3. यदि आप पर मुसीबत आती नहीं है तो उससे सावधान रहे. लेकिन यदि मुसीबत आ जाती है तो किसी भी तरह उससे छुटकारा पाए.
एकोदरसमुद् भूता एकनक्षत्रजातकाः । न भवन्ति समाः शीला यथा बदरिकण्टकाः ।।४।।
4. अनेक व्यक्ति जो एक ही गर्भ से पैदा हुए है या एक ही नक्षत्र में पैदा हुए है वे एकसे नहीं रहते. उसी प्रकार जैसे बेर के झाड के सभी बेर एक से नहीं रहते.
निःस्पृहो नाधिकारी स्यान्नाकामो मण्डनप्रियः । नाऽविदग्धः प्रियंब्रूयात् स्पष्टवक्ता न वञ्चकः ।।५।।
5. वह व्यक्ति जिसके हाथ स्वच्छ है कार्यालय में काम नहीं करना चाहता. जिस ने अपनी कामना को ख़तम कर दिया है, वह शारीरिक शृंगार नहीं करता, जो आधा पढ़ा हुआ व्यक्ति है वो मीठे बोल बोल नहीं सकता. जो सीधी बात करता है वह धोका नहीं दे सकता.
मूर्खाणां पण्डिता द्वेष्या अधनानां महाधनाः । वरांगना कुलस्त्रीणां सुभगानां च दुर्भगा ।।६।।
6. मूढ़ लोग बुद्धिमानो से इर्ष्या करते है. गलत मार्ग पर चलने वाली औरत पवित्र स्त्री से इर्ष्या करती है. बदसूरत औरत खुबसूरत औरत से इर्ष्या करती है.
आलस्योपगता विद्या परहस्तगतं धनम् । अल्पबीजं हतं क्षेत्रं हतं सैन्यमनायकम् ।।७।।
7. खाली बैठने से अभ्यास का नाश होता है. दुसरो को देखभाल करने के लिए देने से पैसा नष्ट होता है. गलत ढंग से बुवाई करने वाला किसान अपने बीजो का नाश करता है. यदि सेनापति नहीं है तो सेना का नाश होता है.
अभ्यासाध्दार्यते विद्या कुलं शीलेन धार्यते । गुणेन ज्ञायते त्वार्यः कोपो नेत्रेण गम्यते ।।८।।
8. जो वैदिक ज्ञान की निंदा करते है, शास्र्त सम्मत जीवनशैली की मजाक उड़ाते है, शांतीपूर्ण स्वभाव के लोगो की मजाक उड़ाते है, बिना किसी आवश्यकता के दुःख को प्राप्त होते है.
वित्तेन रक्ष्यते धर्मो विद्या योगेन रक्ष्यते । मृदुना रक्ष्यते भूपः सत्स्त्रिया रक्ष्यते गृहम् ।।९।।
9. व्यक्ति अकेले ही पैदा होता है. अकेले ही मरता है. अपने कर्मो के शुभ अशुभ परिणाम अकेले ही भोगता है. अकेले ही नरक में जाता है या सदगति प्राप्त करता है.
अन्यथा वेदपाण्डित्यं शास्त्रमाचारमन्यथा । अन्यथा वदता शांतंलोकाःक्लिश्यन्ति चाऽन्यथा ।।१०।।
10. वासना के समान दुष्कर कोई रोग नहीं. मोह के समान कोई शत्रु नहीं. क्रोध के समान अग्नि नहीं. स्वरुप ज्ञान के समान कोई बोध नहीं.
दारिद्र्यनाशनं दान शीलं दुर्गतिनाशनम् । अज्ञाननाशिनी प्रज्ञा भावना भयनाशिनी ।।११।।
11.दान गरीबी को ख़त्म करता है. अच्छा आचरण दुःख को मिटाता है. विवेक अज्ञान को नष्ट करता है. जानकारी भय को समाप्त करती है.
नास्ति कामसमो व्याधिर्नास्ति मोहसमो रिपुः । नास्ति कोपसमो वहि नर्नास्ति ज्ञानात्परं सुखम् ।।१२।।
12. जिसने अपने स्वरुप को जान लिया उसके लिए स्वर्ग तो तिनके के समान है. एक पराक्रमी योद्धा अपने जीवन को तुच्छ मानता है. जिसने अपनी कामना को जीत लिया उसके लिए स्त्री भोग का विषय नहीं. उसके लिए सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड तुच्छ है जिसके मन में कोई आसक्ति नहीं.
जन्ममृत्युं हि यात्येको भुनक्त्येकं शुभाशुभम् । नरकेषु पतत्येक एको याति परां गतिम् ।।१३।।
13. जब आप सफ़र पर जाते हो तो विद्यार्जन ही आपका मित्र है. घर में पत्नी मित्र है. बीमार होने पर दवा मित्र है. अर्जित पुण्य मृत्यु के बाद एकमात्र मित्र है.
तृणं ब्रह्मविदः स्वर्गस्तृणं शूरस्य जीवितम् । जिताक्षस्य तृणं नारी निःस्पृहस्य तृणं जगत् ।।१४।।
14. समुद्र में होने वाली वर्षा व्यर्थ है. जिसका पेट भरा हुआ है उसके लिए अन्न व्यर्थ है. पैसे वाले आदमी के लिए भेट वस्तु का कोई अर्थ नहीं. दिन के समय जलता दिया व्यर्थ है.
विद्या मित्रं प्रवासेषु भार्या मित्रं गृहेषु च । व्यधितस्यौषधं मित्रं धर्मो मित्रं मृतस्य च ।।१५।।
15. वर्षा के जल के समान कोई जल नहीं. खुदकी शक्ति के समान कोई शक्ति नहीं. नेत्र ज्योति के समान कोई प्रकाश नहीं. अन्न से बढ़कर कोई संपत्ति नहीं.
वृथा वृष्टिस्समुद्रेषु वृथा तृप्तेषु भोजनम् । वृथा दानं धनाढ्येषु वृथा दीपोऽदीवाऽपि च ।।१६।।
16. निर्धन को धन की कामना. पशु को वाणी की कामना. लोगो को स्वर्ग की कामना. देव लोगो को मुक्ति की कामना.
नास्ति मेघसमं तोयं नास्ति चात्मसमं बलम् । नास्तिचक्षुः समं तेजो नास्ति धान्यसमं प्रियम् ।।१७।।
17. सत्य की शक्ति ही इस दुनिया को धारण करती है. सत्य की शक्ति से ही सूर्य प्रकाशमान है, हवाए चलती है, सही में सब कुछ सत्य पर आश्रित है.
अधना धनमिच्छन्ति वाचं चैव चतुष्पदः । मानवाः स्वर्गमिच्छन्ति मोक्षमिच्छन्तिदेवताः ।।१८।।
18. लक्ष्मी जो संपत्ति की देवता है, वह चंचला है. हमारी श्वास भी चंचला है. हम कितना समय जियेंगे इसका कोई ठिकाना नहीं. हम कहा रहेंगे यह भी पक्का नहीं. कोई बात यहाँ पर पक्की है तो यह है की हमारा अर्जित पुण्य कितना है.
स्त्येन धार्यते पृथ्वी स्त्येन तपते रविः । स्त्येन वाति वायुश्च सर्वं सत्ये प्रतिष्ठितम् ।।१९।।
19. आदमियों में नाई सबसे धूर्त है. कौवा पक्षीयों में धूर्त है. लोमड़ी प्राणीयो में धूर्त है. औरतो में लम्पट औरत सबसे धूर्त है.
चला लक्ष्मीश्चलाः प्राणश्चले जीवितमन्दिरे । चलाऽचले च संसारे धर्म एको हि निश्चलः ।।२०।।
20. ये सब आपके पिता है..
१. जिसने आपको जन्म दिया. २. जिसने आपका यज्ञोपवित संस्कार किया. ३. जिसने आपको पढाया. ४. जिसने आपको भोजन दिया. ५. जिसने आपको भयपूर्ण परिस्थितियों में बचाया.
नराणां नापितो धूर्तः पक्षिणां चैव वायसः । चतुष्पदां श्रृगालस्तु स्त्रीणां धुर्ता च मालिनी ।।२१।।
21. इन सब को आपनी माता समझें .१. राजा की पत्नी २. गुरु की पत्नी ३. मित्र की पत्नी ४. पत्नी की माँ ५. आपकी माँ.
जनिता चोपनेता च यस्तु विद्यां प्रयच्छति । अन्नदाता भयत्राता पञ्चैते पितरः स्मृताः ।।२२।।
22. अर्जित विद्या अभ्यास से सुरक्षित रहती है. घर की इज्जत अच्छे व्यवहार से सुरक्षित रहती है. अच्छे गुणों से इज्जतदार आदमी को मान मिलता है. किसीभी व्यक्ति का गुस्सा उसकी आँखों में दिखता है.
राजपत्नी गुरोः पत्नी मित्र पत्नी तथैव च । पत्नी माता स्वमाता च पञ्चैता मातरः स्मृता ।।२३।। 23. धर्मं की रक्षा पैसे से होती है. ज्ञान की रक्षा जमकर आजमाने से होती है. राजा से रक्षा उसकी बात मानने से होती है. घर की रक्षा एक दक्ष